Friday, June 12, 2020

लाल किताब और बृहस्पति खाना नं: 1 (राजगुरु)

बृहस्पति 1 (राजगुरु, गुरु बैठा सूरज-मंगल के घर)


(1942)

घर पहला है तख़्त हजारी, ग्रहफल राजा कुंडली का

गुरु मगर न इसको चाहे, झगडा मनुष है माया का

गुरु अगर घर पहले आवे, इल्म सोना ले आता है

लिखना पढना अगर न जाने, भेस फकीरी पाता है

सोना भी जो सबसे उम्दा, दया धर्म भी उत्तम हो

सेहत दौलत रिश्तेदारा, नाग वली का साया हो

उम्र 16 से घर को तारे, कुल संसार बुढापे में

गुरु हवा दोनों है चलते, फिरते कुल ज़माना में

उम्र 27 पिता से बिछड़े, खुद कमाई करता हो

शनी चक्कर से 7वे आवे, पिता न उसका बैठा हो

उम्र मामू की छोटी होवे, पर छोटी न अपनी हो

घर 7व गर खाली होवे, टांग तख़्त की टूटी हो

माता इसकी शिवजी होवे, पर औरत से डरती हो

बेटे को तो तारती जावे, खुद 51 मरती हो

केतु लड़का आसन उम्दा, बुध निकम्मा लेते है

घर 5वे या गर शनि 5 हो बैठा, कोठे भी उसे मंदे है

चक्कर दूजा हो जब उसका, उम्र निनावन (49) गिनते है

गुरु जगत में प्रगट होगा, सुख दुनिया का लेते है

(1952)

आम हालत: इल्म आयु घर पहले सोना 

इल्म राज़ तेरा खजाने की चाबी

फ़कीरी मुकम्मल या देगा नवाबी

एक ही वक़्त पे पैदा, हुए थे दो बिरादर

एक शाह ताजोर है, दूजा गदा बना है

इल्म बी ए या डिग्री कोई, लम्बी उम्र धन कुदरती हो

श्राप देवे ऋण पितृ टेवे, बी ए पढ़ा न कुल कोई हो

केतु-चंदर-बुध उम्दा होते, पितृ राजा सन्यासी हो

रवि शनि 8-11मंदे, गुरु हुआ तब मिटटी हो 




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