Friday, June 12, 2020

लाल किताब और बृहस्पति खाना नं: 5

बृहस्पति 5 (पक्का घर, ग्रहफल का, गुरु बैठा सूरज के घर)


(1942)

गुरु है 5वे लीद में मानिक, पत्थर में वो मोती है

छोटी नैय्या ख्वाह बेशक होवे, नरक कुटुम्बी धोती है

दुश्मन 2-9-11 बैठे, डूबती बेडी होती है

दिन गुरु कोई लड़का जन्मे शेरो की जोड़ी होती है

जब तलक न हो कोई ऐसा, नींद भरी शेर होती है

लड़के पोते बेशक बैठे, किस्मत सोई होती है

(1952)

धर्म नाम पर मांग दुनिया जो खाता

असासा ही है बेच अपना वह जाता

औलाद कदर से बुढ़ापा उम्दा सौदा इमानी बढ़ता हो

हाल बुजुर्गा बेशक कैसा, नस्ल आईंदा फलता हो

उसके गुरु दिन लड़का जन्मे, या की जनम शनि 9 शनि हो

लेख सोया भी आ तब जागे, जोड़ी शेरों की बनती हो

केतु मंदा औलाद मंदी, मंदे गुरु ऋण पितृ हो

चंदर-सूरज-बुध उम्दा पापी लावल्द होता न वह कभी हो




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