Friday, June 12, 2020

लाल किताब और बृहस्पति खाना नं: 4

बृहस्पति 4 (उच्च फल का, गुरु बैठा चंदर के घर)


(1942)

बृहस्पति चौथे घर हुआ, समंदर दूध भरा

ग्रह चारों ही नेक हो, पानी मिटटी आग हवा

उच्च बृहस्पति जब हुआ, बढ़ता चंदर हो

बुध अकेला छोड़ के, फल सबका उम्दा हो

10वे बुध गर आ हुआ, खोटी हवा चलने लगी

दुनिया को क्या तारे जब खुद, बेडी अपनी डूबती

(1952)

पड़ा माया बंद पानी, दुनिया जो सड़ता

फले बीज दुनिया, जो बंद मिटटी करता

तख़्त विक्रमी 32 परियां, ब्रह्म पूर्ण कोई अपना हो

ज़मीन मुरब्बे दूध की नदियाँ, शेर सीधा पानी तैरता हो

मंद शनि बुध इज्ज़त मंदी, 10वे बैरी ज़र डोलता हो

केतु बुरे से शाह लेगा फकीरी, राहू भले सब उम्दा हो

शुक्कर चंदर और मंगल मोती दूध भरे त्रिलोकी जो

नाश बुजुर्गां कुल सब होती, इश्क गंदे जब खुद सरी हो




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